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…और मेरी बिरयानी लखनऊ में ही रह गई

सच्ची कहानी
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मैं हमेशा से ही नॉनवेज का शौकीन रहा हूं. हालांकि मेरे घर पर नॉनवेज कम ही पसंद किया जाता है. मेरी पसंद की एक वजह यह भी है कि मैं 12वीं क्लास के बाद से ज्यादातर बाहर ही रहा हूं. दूसरी वजह यह भी है कि मुझे दोस्त भी ज्यादातर नॉन वेजीटेरियन ही मिले. खैर अच्छा यह हुआ कि इस शौक के चक्कर में मैं अच्छा खाना बनाना सीख गया हूं. ऐसा मैं नहीं वो लोग कहते हैं जिन्होंने मेरे हाथों का बना खाना खाया. खैर अब मुद्दे की बात करते हैं.

दिल्ली में मेरे ज्यादातर दोस्त ऐसे हैं जो दिल्ली से बाहर के हैं. इसलिए वो फेस्टिवल या बिना फेस्टिवल के भी अपने घर जाते रहते हैं और वो हमेशा कुछ न कुछ घर का बना हुआ खिलवाते हैं. ईद पर भी एक दोस्त अपने घर लखनऊ जा रहा था. बातचीत के दौरान दोस्त ने घर की बनी बिरयानी खिलाने का वादा किया.

दोस्त ने वादा तो कर दिया लेकिन लेकिन कुछ देर बाद ही बोला कि भाई माफी चाहता हूं कि घर से बिरयानी नहीं ला पाऊंगा. इसकी वजह थी खौफ, डर और वो भय जो इस देश के गौरक्षकों ने पैदा किया है. आमीन अली लखनऊ के इंद्रानगर में रहता है उसने कहा भाई बिरयानी तो ले आऊं लेकिन डर है कि कहीं मैं भी उन लोगों की लिस्ट मैं शामिल न हो जाऊं जिन लोगों को बीफ के शक में मार दिया गया.

आमीन की आखों में वो डर वो खौफ मैंने बहुत करीब से देखा है. बताते हुए उसके माथे की सलवटे सैंकड़ों सवाल कर रही थीं. उसके बताने के इस अंदाज ने मुझे यह सब लिखने के लिेए मजबूर कर दिया. अब आमीन अपने घर लखनऊ पहुंच गया था.

मैंने आमीन को ईद की बधाई देने के लिए फोन किया. मैंने फोन पर फिर हंसते हुए कहा कि बिरयानी तो तुम खिलवाओगे नहीं. उसने फिर वही जवाब दिया कि देश के हालात सही होते तो जरूर खिलवाता, लेकिन मैं मजबूर हूं. आमीन ने कहा वैसे मेरा बहुत मन है कि मैं यहां से कुछ नॉनवेज ला सकूं लेकिन इस समय के माहौल से डर लगता है. आमीन ने वादा किया है कि दिल्ली आने के बाद मुझे जल्द ही जामा मस्जिद ले जाएगा. जहां वह अपनी पसंदीदा दुकान पर नॉनवेज खिलवाएगा.

ये कोई कहानी नहीं है इसे पढ़कर हमें मंथन करना चाहिए की आखिर ये देश में हो क्या रहा है. यहां लोगों के मौलिक अधिकारों तक का मॉर्डर किया जा रहा है. हमें उन लोगों से सवाल करने चाहिएं जो फर्जी राष्ट्रवाद का नाटक करके देश के लोगों का खून बहा रहे हैं. हमारी सरकार को भी ऐसे नमूनों पर सख्त कार्यवाही करनी चाहिए जो गमछे की आड़ में लोगों की जान ले रहे हैं.

लोग चिंतित हैं कि इस देश में लोकतंत्र है कि नहीं? सरकार है या नहीं? कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज है या नहीं? हमारा देश आपसी भाईचारे के लिए मशहूर है लेकिन इन सवालों के बीच ये भाईचारा दूर-दूर तक कहीं दिखाई नहीं देता.

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